भारत में रोजगार सेवाएं अस्तित्व में आ गई हैं।
विशेष तौर पर इनका पदार्पण आम जनता के बीच हो चुका है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस बात को संजीदगी के साथ महसूस किया गया कि साधारण जीवन में इस मशीनरी का प्रयोग किया जाना चाहिए।
साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत से काम किये जा सकते हैं।
सामाजिक समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए प्रभावशाली प्रयासों द्वारा इनका निराकरण किया जा सकता है।
केंद्र सरकार के निर्देशन व नियंत्रण में इन सेवाओं व मशीनरी का प्रयोग उचित समझा गया।
देश के विभिन्न हिस्सों में महानिदेशक पुनर्वास व रोजगार के निर्देशानुसार रोजगार उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया गया है।
1947 में देश के विभाजन के बाद रोजगार व सेवाओं की आवश्यकता पुनर्वास हेतु महसूस की गई।
ऐसे लोग जो विस्थापित हुए थे, उन्हें तत्काल रोजगार की आवश्यकता थी।
वर्ष 1948 में विभिन्न प्रकार के आवेदकों हेतु रोजगार की मांग को देखते हुए ऐसा महसूस किया गया कि इस प्रकार से रोजगार उपलब्ध करवाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
इसके बाद वर्ष 1956 में इस क्षेत्र में काफी मात्रा में रोजगार उपलब्ध करवाए गए और राज्यों में भी इस प्रकार की सेवाओं को हस्तांतरित किया गया।